यह कहावत काफी प्रचलित है की इंसान जैसा बोता है उसे वैसा ही फल मिलता है। यह कथन इन्सानों तथा प्रकृति के मध्य भी लागू होता है। इंसान प्रकृति के साथ जैसा व्यवहार करेगा प्रकृति भी वही व्यवहार हमारे साथ करेगी अगर हम उसे प्यार करेंगे तो वह भी हमारा ख्याल रखेगी अगर हम उसका दोहन करेंगे तो हमे भी उसका विकट रूप झेलने को तैयार रहना पड़ेगा। बढ़ती प्राकृतिक आपदाओं के पीछे अधिकतर मानव ही जिम्मेदार है। विकास रूपी अभिशाप की राह पर चलते हुए हम अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए प्राकृतिक सम्पदाओं का बिना रुके दोहन कर रहे हैं। भविष्य में इसके क्या परिणाम होंगे सोचा भी नहीं है। हम अपनी भावी पीढ़ी को क्या सौंप के जाएंगे इस बात की तरफ ध्यान ही नहीं है। यही वजह है की विश्वभर के प्रत्येक देश अपनी सम्पदा को संरक्षित करने की दिशा में कार्यरत हैं। भारत ने भी अपनी धरोहर के संरक्षण हेतु कदम उठाने शुरू कर दिये हैं। यह भू-धरोहर हमें जीवाश्म, खनिज,भूआकृति तथा शैलसमूह आदि के माध्यम से करोड़ो वर्ष पहले के दर्शन कराती हैं और विविध प्रकार के जीव समूह की उत्पत्ति तथा विकास के साक्ष्य प्रस्तुत करती हैं।
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विकास को अभिशाप न बनने दें और भूधरोहर कि…
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यह कहावत काफी प्रचलित है की इंसान जैसा बोता है उसे वैसा ही फल मिलता है। यह कथन इन्सानों तथा प्रकृति के मध्य भी लागू होता है। इंसान प्रकृति के साथ जैसा व्यवहार करेगा प्रकृति भी वही व्यवहार हमारे साथ करेगी अगर हम उसे प्यार करेंगे तो वह भी हमारा ख्याल रखेगी अगर हम उसका दोहन करेंगे तो हमे भी उसका विकट रूप झेलने को तैयार रहना पड़ेगा। बढ़ती प्राकृतिक आपदाओं के पीछे अधिकतर मानव ही जिम्मेदार है। विकास रूपी अभिशाप की राह पर चलते हुए हम अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए प्राकृतिक सम्पदाओं का बिना रुके दोहन कर रहे हैं। भविष्य में इसके क्या परिणाम होंगे सोचा भी नहीं है। हम अपनी भावी पीढ़ी को क्या सौंप के जाएंगे इस बात की तरफ ध्यान ही नहीं है। यही वजह है की विश्वभर के प्रत्येक देश अपनी सम्पदा को संरक्षित करने की दिशा में कार्यरत हैं। भारत ने भी अपनी धरोहर के संरक्षण हेतु कदम उठाने शुरू कर दिये हैं। यह भू-धरोहर हमें जीवाश्म, खनिज,भूआकृति तथा शैलसमूह आदि के माध्यम से करोड़ो वर्ष पहले के दर्शन कराती हैं और विविध प्रकार के जीव समूह की उत्पत्ति तथा विकास के साक्ष्य प्रस्तुत करती हैं।