विकास को अभिशाप न बनने दें और भूधरोहर कि रक्षा करें.... हिमालय से जुड़ी कुछ बातें...
यह कहावत काफी प्रचलित है की इंसान जैसा बोता है उसे वैसा ही फल मिलता है। यह कथन इन्सानों तथा प्रकृति के मध्य भी लागू होता है। इंसान प्रकृति के साथ जैसा व्यवहार करेगा प्रकृति भी वही व्यवहार हमारे साथ करेगी अगर हम उसे प्यार करेंगे तो वह भी हमारा ख्याल रखेगी अगर हम उसका दोहन करेंगे तो हमे भी उसका विकट रूप झेलने को तैयार रहना पड़ेगा। बढ़ती प्राकृतिक आपदाओं के पीछे अधिकतर मानव ही जिम्मेदार है। विकास रूपी अभिशाप की राह पर चलते हुए हम अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए प्राकृतिक सम्पदाओं का बिना रुके दोहन कर रहे हैं। भविष्य में इसके क्या परिणाम होंगे सोचा भी नहीं है। हम अपनी भावी पीढ़ी को क्या सौंप के जाएंगे इस बात की तरफ ध्यान ही नहीं है। यही वजह है की विश्वभर के प्रत्येक देश अपनी सम्पदा को संरक्षित करने की दिशा में कार्यरत हैं। भारत ने भी अपनी धरोहर के संरक्षण हेतु कदम उठाने शुरू कर दिये हैं। यह भू-धरोहर हमें जीवाश्म, खनिज,भूआकृति तथा शैलसमूह आदि के माध्यम से करोड़ो वर्ष पहले के दर्शन कराती हैं और विविध प्रकार के जीव समूह की उत्पत्ति तथा विकास के साक्ष्य प्रस्तुत करती हैं।
देश की भू-धरोहर के हनन को रोकने की दिशा में काफी चुनौतियाँ हैं मगर देश के वैज्ञानिक इन चुनौतियों को ढाल बनाकर आगे बढ़ रहे हैं। लखनऊ स्थित बीरबल साहनी पुराविज्ञान संस्थान (Birbal Sahni Institute of Palaeosciences 'BSIP') के निदेशक प्रो.एम.जी.ठक्कर और उनकी टीम अपने अध्ययन के माध्यम से इस दिशा में पूरी तत्पर्यता से जुटे हुए हैं जिससे भूगर्भीय तथा पारिस्थितिक क्षेत्रों को भावी पीढ़ी तथा वैश्विक पर्यटकों हेतु संरक्षित रखा जा सके और जिससे अछूते परिदृश्यों का बिना हानि पहुंचाए अन्वेषण किया जा सके।
प्रो.ठक्कर ने भूधरोहर की महत्ता के बारे में बताया की भूवैज्ञानिक धरोहर स्थल वह भूगर्भीय स्थान होते हैं जो क्षेत्र की उत्पत्ति, उस काल की पुराजलवायु संबंधी जानकारी प्रदान करने में सहायक हों तथा पृथ्वी के विकास और विज्ञान के बारे में बता सके और जिसका प्रयोग अनुसंधान, शिक्षा में किया जा सके तथा भूमंडलीय से लेकर क्षेत्रीय संदर्भ में हमे जानकारी प्रदान कर सके यह सभी कारक भूधरोहर की परिभाषा में शामिल होते हैं। उन्होने बताया की भू-पर्यटन सतत या दीर्घकालिक पर्यटन है जिसमें प्राथमिक भूमिका वैज्ञानिक विशेषताओं पर केंद्रित है जो पर्यावरण तथा सांस्कृतिक विशेषताओं को समझे उनके संरक्षण पर केन्द्रित हो तथा स्थानीय लोगों के लिए लाभकारी हो। इस पर्यटन के अन्तर्गत पर्यटक भू-दृश्यो की विशेषताओं तथा उनके विकास का अनुभव करता है। इस क्षेत्र में रूचि रखने वाले सभी लोगों के लिए यह पर्यटन स्थल नया अनुभव प्रदान कर सकता है। भू-धरोहर संबंधी अध्ययन हेतु हिमालय एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
प्रो.ठक्कर ने जानकारी दी कि हिमालय लगभग 10,000 ग्लेशियरों तथा दुनिया की 10 सबसे ऊंची चोटियों का निवास है। पर्वत श्रंखलाएं सदियों से एक ढाल के समान देश की रक्षा कर रही हैं। इसके साथ ही मौसम तथा वर्षा को भी हिमालय ही नियंत्रित करता है।
हिमालय का अधोमुखी विभाजन (Longitudinal division of the Himalaya)
दो महाद्वीपों के टकराव से विकसित हुए हिमालय की तरुणावस्था, इसका प्रभावशाली विवरण इसे विविध भूगर्भिक प्रक्रियाओं के अध्ययन हेतु आदर्श स्थान बनाता है। करोडों वर्ष पहले भारतीय टेक्टानिक प्लेट के यूरशिया के साथ निरंतर टकराव के परिणामस्वरूप हिमालय का उदय हुआ। यह प्रक्रिया अभी भी निरंतर चल रही है।
18 करोड़ वर्ष पहले भारत एशिया का भाग न होकर एक बड़े द्वीप का हिस्सा था, यानि भारत ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण अमरीका तथा अंटार्टिका को मिलाकर एक बड़ा महाद्वीप था जिसे हम गोंडवाना लैंड के नाम से भी जानते हैं। लगभग 50 Ma पूर्व यह यूरेशिया से टकराया। प्रो.ठक्कर ने बताया कि भारत और यूरेशिया (वर्तमान एशिया) के मध्य विशाल समुद्र था जिसे टेथिस के नाम से जाना जाता है। जब भारत तथा यूरेशिया की टेक्टोनिक प्लेट में टकराव हुआ तब निक्षेपण प्रक्रिया के कारण समुद्र के तल पर एकत्रित निक्षेप/अवसाद ऊपर की ओर उठने लगे और हिमालय के सबसे ऊपरी भाग का निर्माण हुआ। इसे टेथिस हिमालय भी कहा जाता है।पूर्व से पश्चिम तक फैली हिमालय पर्वत श्रंखला का विस्तार एक माला के समान है इसलिए इन्हें पर्वत माला भी कहा जाता है। हिमालय अपनी ऊंचाई के चलते कई भागों में विभाजित किया जा सकता है।
आउटर हिमालय (Outer Himalaya)
पहले भाग को आउटर हिमालय ‘शिवालिक रेंज’ के नाम से भी जाना जाता है । यह क्षेत्र 50 लाख वर्ष के इतिहास को दर्शाता है। यह वह स्थान है जहां बड़े-बड़े मैमथ (mammoth) के जीवाश्म भी प्राप्त हुए हैं। समुद्र तल से इनकी औसत ऊंचाई 1500 – 1700 m तक होती है। अगले चरण में लेस्सर हिमालय आता है, इनकी औसत ऊंचाई 3700-4500 m तक मानी गई है।
लेस्सर हिमालय (Lesser Himalaya)
इसके बाद शुरुआत होती है हायर हिमालय की जिसकी ऊंचाई लगभग 6100 m तक है हायर हिमालय में ‘नन्दा देवी’,‘काराकोरम’,‘माउंटएवरेस्ट’,‘डोलाधार’ आदि पर्वत श्रंखलाए शामिल हैं। यह पर्वत क्रिस्टलीय है, जिसमे प्रमुख शैलसमूह ग्रेनाइट के हैँ।
हाइयर हिमालय (Higher Himalaya)
क्रिस्टलीय शैलसमूह (Crystalline Rocks)
इसके बाद आते हैं टेथिस हिमालय,यह वही चोटियाँ हैं जो टेथिस समुद्र के निक्षेप को दर्शाते हैं और फिर शुरूआत होती है ट्रांस हिमालय की जो तिब्बत क्षेत्र में हैं इसके बाद पठार(plateau) शुरू हो जाता है।
टेथीस हिमालय(Tethys Himalaya)
वैज्ञानिकों की माने तो भारत और एशिया के मध्य होने वाले टेक्टोनिक टकराव की प्रक्रिया निरंतर चल रही है।
By
Parul Datt Saxena
Credit for Inputs:
Prof M.G.Thakkar
Director
Birbal Sahni Institute Of Palaeosciences ‘BSIP’