मैहर सैंडस्टोन में मिले जीवाश्म की वास्तविकता जानें…. Lets know about the reality of fossil found in Maihar Sandstone…
Vindhyan supergroup/ Dickinsonia tenuis
ग्रेगरी रेटलैक (Gregory Retallack) एक जाने माने अमेरिकी शोधकर्ता हैं । उन्होंने अपनी टीम के सदस्यों के साथ 2021 में एक शोध पेपर प्रस्तुत किया जिसमें दावा किया गया कि भारत के मध्य प्रदेश राज्य में विंध्यन बेसिन (Vindhyan basin) में स्थित मैहर सैंडस्टोन (Maihar Sandstone) चट्टानों में भीमबेटका केव शेल्टर (Bhimbetka Cave Shelter) जो एक यूनेस्को विश्व विरासत स्थल (‘UNESCO world heritage site’) है। यहाँ पर एडीआकारन काल (Ediacaran Period) में पाए जाने वाले बहु कोशीय जीव डिक्किन्सोनिआ तेनुइस (Dickinsonia tenuis) के जीवाश्म मौजूद हैं। जीवाश्म अध्ययन से जुड़े वैज्ञानिकों के लिए तो यह खोज़ एक बड़ी खुशखबरी थी और यह ख़ुशी बरक़रार भी रहती अगर सही में इस स्थल पर जीवाश्म की मौजूदगी दर्ज़ होती। मगर अफ़सोस की बात तो यह है की यह शोध गलत साबित हुआ। शायद ग्रेगरी रेटलैक और उनकी टीम ने अपने अध्ययन और पेपर लिखने में जल्दबाज़ी करदी और नतीजा यह निकला की जहाँ पर इसके जीवाश्म की मौजूदगी का दावा किया गया वहां पर मात्र मधुमक्खी के छत्ते के छाप देखने को मिले। विंध्यन बेसिन में वर्षों से अध्ययन में जुड़े बीरबल साहनी इंस्टिट्यूट ऑफ़ पलिओसाइंसेज, लखनऊ ‘Birbal Sahni Institute of Palaeosciences’, Lucknow (BSIP) के वैज्ञानिकों ने तथ्यों के साथ इस बात की पुष्टि करी है। संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉक्टर मुकुंद शर्मा, डॉक्टर एस. के. पाण्डेय एवं डॉक्टर शमीम अहमद का इसमें महत्वपूर्ण योगदान है। पिछले कई वर्षों से यहाँ पर भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक अध्ययन कर रहे हैं। इस क्षेत्र में बहुत से जीवाश्म भी मिले हैं और डिक्किन्सोनिआ तेनुइस के मिलने की काफी उम्मीदे हैं। डॉक्टर शर्मा ने बताया की डिक्किन्सोनिआ के जीवाश्म की संरचना एवं मधुमक्खी के छत्ते के चिन्ह को दूर से देखकर धोखा खाया जा सकता है मगर ठीक से अध्ययन किया जाये तो जीवाश्म और छाप में अंतर करना बहुत आसान है। माना जा रहा है कि ग्रेगरी रेटलैक ने सिर्फ चट्टानों के दूर से किये गए अवलोकन मात्र से यह निष्कर्ष निकाला कि यहाँ पर डिक्किन्सोनिआ के जीवाश्म मौज़ूद हैं।
एडीआ कारन काल (Ediacaran Period ) एवं डिक्किन्सोनिआ तेनुईस (Dickinsonia tenuis )
अब बात करते हैं एडीआकारन काल (Ediacaran Period ) की और जानते हैं कि इस काल में पाए जाने वाले डिक्किन्सोनिआ तेनुइस (Dickinsonia Tenuis ) जीव का इतना महत्व क्यों है ? जीवाश्म अध्ययन से जुड़े वैज्ञानिकों को एडीआकारन काल में मिलने वाले जीवों के अबतक जो भी जीवाश्म मिले हैं उसमें से कुछ की बनावट अस्पष्ट और चकरा देने वाली है। डिक्किन्सोनिआ तेनुइस (Dickinsonia tenuis ) जीव भी उसी काल में पाया गया। धरती के शुरूआती दौर में पाए जाने वाले पहले बहुकोशीय जीवों के रूप में यह भी अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराता है। यह आज से 570 मिलियन वर्ष पहले का समय है यानी यह काल आज से ( 63.5 करोड़ वर्ष पहले आरम्भ हुआ और इसका अंत 54 करोड़) पहले हुआ। दिलचस्प बात यह की वर्तमान में इससे मिलता-जुलता कोई भी जीव देखने को नहीं मिलता है। इसलिए इसकी बनावट के बारे में जानकारी जुटाना कठिन भी है और दिलचस्प भी। एककोशीय जीवों के बाद इनकी उपस्थिति धरती पर देखी गई इसलिए इसका अध्ययन जीव वैज्ञानिकों एवं जीवाश्म वैज्ञानिकों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। इन जीवों के जीवाश्म पर किए अध्ययन से पता चला है कि इनमें बहुत कम अंग पाए जाते थे जैसे पाचन अंग आदि और यह जीव इन्हीं अंगो के सहारे जीवित रहते थे। अध्ययन बताते हैं की यह जीव चिकने, अंडाकार आकार के समतल दिखने वाले जीव रहे होंगे। विश्व के कई स्थानों में इनके जीवाश्म मिल चुके हैं। मैहर सैंडस्टोन में भी इनके मिलने की काफी उम्मीदें है।
डिक्किन्सोनिआ तेनुइस के जीवाश्म कुछ ऐसे नज़र आते हैं
Fossil of Dickinsonia tenuis
ऐसा क्या हुआ जो ग्रेगरी रेटलैक के अध्ययन पर प्रश्नचिन्ह लग गया ?
डॉक्टर मुकुंद शर्मा, डॉक्टर एस के पांडेय और डॉक्टर शमीम अहमद इस क्षेत्र में कई वर्षों से अध्ययन कर रहे हैं यह क्षेत्र उनके शोधकार्य का हिस्सा है, ऐसे में जब डिक्किन्सोनिआ के जीवाश्म की उपस्थति से जुड़ा पेपर सामने आया तो उन्होंने भी इस स्थान की अपनी तरह से जांच करी। जब जांच की गयी तो परिणाम चौकाने वाले थे। चट्टानों में जीवाश्म के स्थान पर मधुमक्खी के छत्ते के चिन्ह देखने को मिले। डॉक्टर शर्मा और उनकी टीम की मानें तो असली जीवाश्म चट्टानों की सतह में समतल तरीके से संरक्षित होते हैं । उनकी छाप भी गहरी होती है और वह कभी ऊपरी सतह पर मौजूद नहीं होते हैं। इसलिए दूर से किसी निष्कर्ष पर पहुंचना गलत है। जीवाश्म के अध्ययन के लिए उस स्थान पर जाकर जांच करना जरूरी होता है। जब तक उस स्थान के नमूने न एकत्र किये जाये कोई भी बात को साबित करना सही नहीं होता है। यही वजह है कि जिस इम्प्रैशन या चिन्ह को दिक्किन्सोनिआ समझा गया असल में वह जीवाश्म था ही नहीं। चट्टानों पर छत्ते की छाप के साथ-साथ आसपास मधुमक्खी के छत्ते भी देखने को मिले और मधुमक्खियां भी पायी गयी। बीरबल साहनी पुरा विज्ञान संस्थान ’ BSIP’ के वैज्ञानिकों ने संरक्षित स्थान के करीब जाकर अध्ययन करने के लिए सारे नियम कानून का पालन करते हुए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (Archaeological Survey of India) और यूनेस्को ‘UNESCO’ से अनुमति ली। ‘ UNESCO’ साइट होने की वजह से इन चट्टानों के करीब जाने की अनुमति नहीं होती है। वहां पहुंचकर उस स्थान के कुछ नमूने एकत्र किये जिससे इन्हें प्रयोगशाला में भी जांचा जा सके कि वहां जीवाश्म के अंश है या साधारण मधुमक्खी का छत्ता है। एकत्र किये गए नमूनों की लेज़र रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी (Laser Raman Spectroscopy ) एवं एक्सरे डिफ्रैक्शन (X-RAY Diffraction ‘XRD’) के माध्यम से जांच करने पर पता चला कि वहां मधुमक्खी से जुड़े अंश और हेक्साडेकेनोइक एसिड (hexadecenoic acid) या पॉमिटिक एसिड (palmitic acid) के अंश जो मधुमक्खी के मोम से निकलता है उसकी मात्रा पायी गयी।
अध्ययन के दौरान चट्टानों पर आसपास बहुत से ऐसे निशान मौजूद थे साथ ही कुछ ही दूरी पर मधुमक्खी का छत्ता भी देखने को मिला।
विंध्यन सुपरग्रुप क्या है ?
विंध्यन सुपरग्रुप विश्व का सबसे पुराना बेसिन है जहाँ पर बहुत से जीवाश्म की खोज करी जा चुकी है जिसके जरिये हमें पृथ्वी के प्रारंभिक काल में जीवन की उत्पत्ति के बारे में समझना आसान हुआ है। विंध्यन बेसिन अपने भीतर लगभग एक बिलियन वर्ष का इतिहास छुपाये हुए है। बेसिन की शुरुआत 1700 मिलियन वर्ष पहले हुई और यह विकास 600 मिलियन पहले जाकर रुका। इसलिए यह अपने भीतर एडीआकारन काल के जीवाश्मों को भी छिपाए हुए है। इस स्थल के अध्ययन से जुड़े बीरबल साहनी पुरा विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों ने बहुत से जीवाश्म की खोज भी की है और अध्ययन से जुड़े पेपर भी प्रकाशित हुए हैं।
बेसिन क्या है ?
बेसिन पृथ्वी का वह भाग होता है जो एक कटोरेनुमा आकार बना लेता है, जिसकी भुजाएँ नीचे से ऊँची होती हैं। यह आकार में अंडाकार या गोलाकार हो सकते हैं। आसान भाषा में कहा जाये तो बाथरूम में मौजूद सिंक या टब के समान होता है।
By
P.D.Saxena
Credit:
Jour. Geol. Soc. India (2023) 99:311-316 https://doi.org/10.1007/s12594-023-2312-2
ORIGINAL ARTICLE
Dickinsonia tenuis reported by Retallack et al. 2021 is not a fossil, instead an impression of an extant 'fallen beehive'
S.K. Pandey, Shamim Ahmad and Mukund Sharma'
'Birbal Sahni Institute of Palaeosciences, 53 University Road, Lucknow - 226 007, India Present address: Centre for Earth Sciences, Indian Institute of Science, Bengaluru-560 012, India
E-mail: skpandey@bsip.res.in*: shamimfragrence@gmail.com; mukund_sharma@bsip.res.in
Received: 11 January 2023/ Revised form Accepted: 15 January 2023
2023 Geological Society of India, Bengaluru, India
That study also published in JGSI in March issue.