क्या मस्तिष्क में ही छुपा है अल्जाइमर, पार्किंसन, मल्टीप्ल स्क्लेरोसिस जैसी बीमारियों का इलाज का राज़?
Is the secret of treatment of diseases like Alzheimer's, Parkinson's, Multiple Sclerosis hidden in the brain itself?
अल्जाइमर, पार्किंसन, मल्टीपल स्क्लेरोसिस इन सभी घातक बीमारियों का सम्बन्ध मस्तिष्क में सूजन से जुड़ा है। इन सभी बीमारियों का अभीतक स्थाई इलाज ढूंढा नहीं जा सका है। अगर यह पता चल जाये की इन बीमारियों का कारण क्या हैं ? तो इससे ग्रसित लोगों के लिए यह एक प्रकार से आशा की किरण की भांति साबित होगा। सीएसआईआर के प्रमुख संस्थानों में से एक लखनऊ स्थित ‘भारतीय विष विज्ञान अनुसंधान संस्थान’ ( CSIR -Indian Institute of Toxicology Research ‘IITR’, Lucknow) के वरिष्ठ वैज्ञानिक और टीम के अन्य सदस्यों द्वारा किये गए शोध में कुछ सकारात्मक परिणाम देखने को मिले हैं। कुछ ऐसे तथ्य सामने आये हैं जो भविष्य में इन गंभीर बिमारियों के इलाज़ में रामबाण साबित हो सकते हैं। इस शोध से जुड़े डॉक्टर देबब्रत घोष ने बताया कि मस्तिष्क में ही ज़ीन स्तर पर कुछ ऐसे कारण छुपे हैं जो मस्तिष्क से सम्बंधित सूजन, पार्किंसन, अल्ज़ाइमर जैसी घातक बिमारियों को बढ़ावा देते हैं। मगर अध्ययन के दौरान कुछ ऐसे परिणाम भी मिले हैं जो इन बीमारियों की रोकथाम में सहायक साबित हो सकते हैं। डॉक्टर घोष ने बताया की शोध में एक और अहम पहलू को भी उजागर किया गया है जो आर्सेनिक से सम्बन्ध रखता है। अध्ययन में देखा गया है की किस प्रकार आर्सेनिक इस प्रकार के रोग को बढ़ावा दे सकता है।
डॉक्टर घोष ने बताया कि उन्हें एक ऐसे माइक्रो आर एन ए (microRNA ‘miRNA’) के बारे में पता चला है जो मस्तिष्क में होने वाली सूजन को नियंत्रित करने में सहायक हो सकते हैं। यह एक तरह के आर एन ए (RNA) हैं, जो बहुत छोटे आकार का होता है। इसका आकार 22 बेस लौंग (22 base long ) होता है। डॉ घोष ने बताया कि उनके शोध से यह पता चला कि एक microRNA, जिसका नाम miRNA-129-5P है, CD200R1 रिसेप्टर प्रोटीन की अभिव्यक्ति को रोकता है और मस्तिष्क में सूजन पैदा करता है। इस रिसेप्टर के बारे में जानकारी देते हुए डॉ घोष ने बताया कि मस्तिष्क में कई प्रकार की कोशिकाएं (cells) बनती हैं। इनमें न्यूरॉन (neuron), एस्ट्रोसाइट्स(astrocytes) एवं ओलिगोडेन्ट्रोसाइट्स (oligodendrocytes) कोशिकाएं शामिल हैं। यह सभी केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (central nervous system) से सम्बंधित हैं परन्तु माइक्रोग्लिया (microglia) जिन्हें ब्रैन मैक्रोफाइज़ेस (macrophages) भी कहते हैं। यह रोग प्रतिरोधक/ इम्यून कोशिकाएं (immune cells) होती हैं।
Singh et. al., J. Biol. Chem. (2022) 298(1) 101521
अगर मस्तिष्क में किसी भी प्रकार का रोगजनक (pathogen) जैसे बैक्टीरिया आदि के माध्यम से संक्रमण पहुंचता है तब माइक्रोग्लिया (microglia) कोशिकाएं ही इन्हें नष्ट करती है। इन्हे ख़त्म करने के लिए यह कोशिकाएं सक्रिय हो जाती हैं और संक्रमण के लिए दोषी बैक्टीरिया के चारों तरफ एक घेरा बनाकर उसे नष्ट कर देती हैं। इस प्रक्रिया के दौरान बहुत से विषाक्त तत्व जैसे रिएक्टिव नाइट्रोजन स्पेसीज और ऑक्सीजन स्पेसीज (reactive nitrogen species and oxygen species) बनने लगते हैं इसके साथ ही बहुत से घुलनशील प्रोटीन भी बनते हैं जो रोगजनकों (pathogen) को नष्ट करने में सहायक होते हैं। इन घुलनशील प्रोटीन्स को साइटोकिन्स (cytokines) कहते हैं। डॉक्टर घोष के अनुसार जब संक्रमण या रोगजनक का अंत हो जाता है तब माइक्रोग्लिया (immune cell ) कोशिका की सक्रियता को शांत अवस्था में लौटना जरूरी है नहीं तो इनकी सक्रियता शरीर के लिए ही घातक साबित हो सकती है क्योंकि सक्रिय कोशिका से बाहर आने वाले विषाक्त तत्व शरीर के लिए और हानिकारक हो जाते हैं और मस्तिष्क में सूजन बढ़ाते हैं। इन्हें शांत करने का काम ‘CD200R1’ रिसेप्टर(receptor) करता है। यह रिसेप्टर माइक्रोग्लिया कोशिका का ही प्रोटीन होता है। मगर समस्या यह है कि यह ‘CD200R1’ भी तभी काम करता है जब इसका बंधन या क्रॉस लिंकिंग एक प्रकार के प्रोटीन से होता है। यह प्रोटीन न्यूरॉन में मौजूद होता है। इसे ‘CD200’ नाम दिया गया है। अध्ययन में देखा गया की अगर यह बंधन नहीं होता है तो ‘CD200R1’ की भूमिका नगण्य हो जाती है। इसकी भूमिका के नगण्य होने पर माइक्रोग्लिया सक्रिय अवस्था में बना रहता है और शरीर को हानि पहुंचाता है । अहम् बात यह उठती है की इस क्रिया को कारगर करने के लिए ‘CD200 R1’ प्रोटीन का होना अति आवश्यक है। इसकी अनिवार्यता को कैसे बरक़रार रखा जाये इस पहलू पर रौशनी डालते हुए डॉक्टर घोष ने बताया की शरीर में कई प्रकार के आर एन ए (RNA) बनते हैं, जैसे कि messenger RNA (mRNA), micro RNA (miRNA) आदि. सामान्य प्रक्रिया में मैसेंजर आर एन ए (mRNA), डी एन ए ( DNA) से निर्मित होते हैं और ‘mRNA’ से प्रोटीन बनते हैं। मैसेंजर आर एन ए से प्रोटीन बनने कि पूरी प्रक्रिया को प्रोटीन सिंथेसिस ‘protein synthesis’ कह्ते है। डी एन ए (DNA) जो आनुवंशिक सूचनाओं को अगली पीढ़ी तक पहुंचाते है, इनसे मैसेंजर आर एन ए (mRNA, messenger RNA) बनने कि प्रक्रिया को ट्रांस्क्रिप्शन (transcription) कहते हैं।
अध्ययन के दौरान एक माइक्रो आर एन ए (miRNA) जिसे miRNA-129-5P पहचान दी गयी है, इसकी कार्यप्रणाली सामने उजागर हुई है। यह माइक्रो आर एन ए, मैसेंजर आर एन ए के साथ बंध जाता है और प्रोटीन बनने की प्रक्रिया को बाधित करता है, यानी डीएनए (DNA) से मैसेंजर आर एन ए (mRNA) बनने के बाद प्रोटीन बनने की अवस्था में यह बाधा उत्पन्न करता है। यह वही प्रोटीन है ‘CD200R1’ जिसके बिना माइक्रोग्लिया को शांत नहीं किया जा सकता है।
अध्ययन का दूसरा और सबसे अहम पहलू आर्सेनिक की भूमिका है। डॉक्टर घोष ने आर्सेनिक एवं पार्किंसन, एल्ज़िमर जैसी गंभीर बिमारियों के बीच के सम्बन्ध के बारे में बताया कि अध्ययन से यह बात सामने आयी है की आर्सेनिक मइक्रोग्लिया की सक्रियता को कम नहीं होने देता है क्योंकि आर्सेनिक ‘CD200R1’ प्रोटीन के बनने में रूकावट डालता है। यह वही प्रोटीन है जो ‘CD200’ के साथ सम्बन्ध स्थापित कर उसको शांत करता है। अर्सेनिक micro RNA जिसे miR-129-5p नाम दिया गया है उसकी अभिव्यक्ति में बढ़ोतरी करता है और ‘CD200R1’ प्रोटीन बनने नहीं देता है। अर्सेनिक कैसे miR-129-5p की अभिव्यक्ति में बढ़ोत्तरी करता है इसको आसान भाषा में समझने के लिये डॉक्टर घोष ने बताया जब किसी भी जीन को अभिव्यक्त (express) नहीं होना होता है, ऐसी स्थिति में जीन पर एक कैपिंग होती है यानी जीन पर एक आवरण चढ़ा होता है। इस प्रक्रिया को DNA मेथाईलैशन (DNA methylation) कहते हैं। शोध में पाया गया कि आर्सेनिक इस आवरण को हटाने का काम करता है। आवरण के हटते ही जीन ट्रांस्क्रिप्शन के माध्यम से miR-129-5p बनने लगते हैं। इनके बनने से ‘CD200R1’ प्रोटीन नहीं बन पाते हैं। इस प्रोटीन की अनुपस्थिति में मइक्रोग्लीया कोशिकाएं शांत नहीं हो पाती हैं और मस्तिष्क में सूजन बढ़ती है। यह सूजन धीरे-धीरे पार्किंसन और अल्जाइमर जैसी बीमारियों को जन्म दे सकती है।
शोध के अहम पहलू
माइक्रोग्लिया कोशिकाओं को शांत करने के लिए ‘CD200R1’ की अभिव्यक्ति जरूरी है।
बहुत छोटे आकार का माइक्रो आर एन ए जिसे miRNA-129-5P नाम दिया गया है, ‘CD200R1’ प्रोटीन बनने में रुकावट पैदा करता है और माइक्रोग्लिया कोशिकाओं को शांत रहने नहीं देता है।
पेयजल या किसी भी स्रोत से मनुष्यों के शरीर में पहुंचने वाला आर्सेनिक दोषी माइक्रो आर एन ए को बनने में मदद करता है। इसके बनने से बंधन के लिए ज़रूरी ‘CD200R1’ प्रोटीन नहीं बन पाता है जो कि मस्तिष्क में सूजन पैदा करता है।
माइक्रोग्लिया कोशिकाओं को शांत रखने वाला प्रोटीन ‘CD200R1’ के बनने में कौन सा माइक्रो आर एन ए बाधक बनता है और इसे किस प्रकार रोका जा सकता है। यह पता चल चुका है।
By
P.Datt.Saxena
credit:
MicroRNA-129-5p-regulated microglial expression of the surface receptor CD200R1 controls neuroinflammation
Received for publication, December 2, 2021, and in revised form. December 12, 2021 Published, Papers in Press, December 22, 2021,
https://doi.org/10.1016/j.jbc.2021.101521
Vikas Singh, Shaivya Kushwaha, Jamal Ahmad Ansari, Siddhartha Gangopadhyay, Shubhendra K. Mishra, Rajib K. Dey, Ashok K. Giri, Satyakam Patnaik and Debabrata Ghosh
From the 'Immunotoxicology Laboratory, Food, Drug & Chemical Toxicology Group and Nanomaterial Toxicology Group, CSIR- Indian Institute of Toxicology Research (CSIR-IITR), Lucknow, Uttar Pradesh, India; Academy of Scientific and Innovative Research (ACSIR), Ghaziabad, India; Developmental Toxicology Laboratory, Systems Toxicology & Health Risk Assessment Group, CSIR-Indian Institute of Toxicology Research (CSIR-IITR), Lucknow, Uttar Pradesh, India; "Molecular Genetics Division, CSIR-Indian Institute of Chemical Biology (CSIR-IICB), Kolkata, West Bengal, India; "Water Analysis Laboratory, Nanomaterial Toxicology Group, CSIR-Indian Institute of Toxicology Research, Lucknow, Uttar Pradesh, India
Edited by Paul Fraser