कितनी घातक हो सकती है ‘प्लास्टिक’
#Microplastic
पिछले कुछ दशकों में सूक्ष्मप्लास्टिक कण (microplastic) से उत्पन्न होने वाला प्रदूषण विश्वस्तर पर एक गंभीर समस्या बन कर उभर रहा है। यह प्लास्टिक के सूक्ष्मकण (micro Plastic) अधिकतर मानव जनित है, बढ़ते शहरी करण, औद्योगीकरण, और प्लास्टिक उत्पाद के सही तरीके से प्रबंधन न होने से पर्यावरण के पारितंत्र (ecosystem) में यह सूक्ष्मप्लास्टिक कण (Microplastic or nanoplastic) के रूप में घुलते जा रहे हैं। धरती या मृदा में इनकी बढ़ती मात्रा कृषि से जुड़े तंत्र के लिए काफी घातक साबित हो सकती है। सूक्ष्मप्लास्टिक कण (Microplastic) के बढ़ते खतरे का जलीय पर्यावरण में तो अध्ययन किया गया है लेकिन स्थलीय जीवन मे यह क्या प्रभाव डाल सकते हैं। नेशनल बोटैनिकल रिसर्च इंस्टिट्यूट (CSIR-National Botanical Research Institute, Lucknow) के वैज्ञानिकों एवं कुछ अन्य संस्थानों के वैज्ञानिकों ने इस बात को जानने का प्रयास किया है।
सूक्ष्म प्लास्टिक (microplastic / nanoplastic) कण क्या हैं ?
जब बड़े प्लास्टिक विभिन्न कारणों से छोटे- छोटे कणो में विभाजित हो कर पर्यावरण में घुल जाते हैं। इन्हें सूक्ष्म प्लास्टिक या मइक्रोप्लास्टिक कहते हैं। इनके पर्यावरण में घुलने के बहुत से कारण हैं. इन में मुख्यता - उद्योगों मैं बड़े स्तर पर प्लास्टिक का इस्तेमाल होना, रोज़ मर्रा की जिंदगी मैं उपयोग में आना और जब यह अनुपयोगी हो जाये तब इनका प्रबंधन सही तरीके से न होना। ऐसे में यह प्लास्टिक विभिन्न तरह की रासायनिक, भौतिक क्रियाओं की वजह से छोटे कणों में टूट जाते हैं और पूरे इको सिस्टम या पारितंत्र में मिलते हैं और नुकसानदेह साबित हो सकते हैं। इससे बचने के लिए जरूरी है कि कचरा प्रबंधन पर ध्यान दिया जाये। जिससे इन्हें पुनः इस्तेमाल में लाया जा सके और यह पर्यावरण को प्रदूषित नहीं कर पाएं।
राइजोस्फेयर (rhizosphere) मिट्टी के उस छोटे भाग को कहते हैं जो पौधों की जड़ से निकलने वाले द्रव्य (secretions) तथा उस से सम्बन्धित सूक्ष्म जीवों (micro organisms) से सीधे प्रभावित होती है।
वैज्ञानिक सदस्यों में डा0 पूनम सी सिंह, डा0 पंकज कुमार श्रीवास्तव, डा0 सूची श्रीवास्तव, डा0 अंजू पटेल, डा0 वीरेन्द्र कुमार मिश्र, डा0 सरोज कान्ता बारिक एवं छात्रों में श्वेता यादव और एकता गुप्ता की टीम ने अपने अध्ययन एवं शोध में यह जानने का प्रयास किया है की माइक्रोप्लास्टिक मिट्टी में घुल कर मिट्टी के भौतिक, रासायनिक एवं जैविक गुणों को किस प्रकार नुकसान पहुंचा सकते हैं । अध्ययन से यह पता चलता है कि मिट्टी में मौजूद सूक्ष्मजीवों, राइजोस्फेयर (rhizosphere) जो पौधों के लिए फायदेमंद होते हैं उन्हें प्लास्टिक के सूक्ष्म कण काफी नुकसान पहुंचा सकते हैं। मिट्टी में दूषित पदार्थों से लड़ने की स्वतः क्षमता होती है, यह कण इस क्षमता को भी प्रभावित करते हैं, क्यूंकि जिस माध्यम से पौधे धरती से पानी को सम्माहित (absorb ) करते हैं उसी माध्यम से प्लास्टिक के सूक्ष्मकणो (microplastic) के ज़मीन में घुले होने के कारण यह पौधों के भीतरी तंत्र में प्रवेश कर सकते है। इस प्रकार से पेड़ पौधों की कार्यप्रणाली (functioning) पर घातक प्रभाव पड़ता है और पूरे कृषि तंत्र को ही नुकसान पहुंच सकता है।
मानव जनित गति विधियों के बढ़ने और औद्योगिकरण के बढ़ने से हर क्षेत्र में प्लास्टिक का उपयोग हो रहा है। प्लास्टिक ( plastic) के कुछ गुणों के कारण हर क्षेत्र में इन की मांग है। सब से पहला गुण तो यही है की यह वजन में काफी हल्कि होती है, इनकी उम्र काफी लंबी होती है, प्लास्टिक काफी सस्ता पड़ता है, लोहे के विपरीत इन में जंक (rust ) नहीं लगती है। इसी वजह से इनका इस्तेमाल हर क्षेत्र में बहुत अधिक मात्रा में हो रहा है। इन क्षेत्रों में मेडिकल, कृषि, फार्मास्यूटिकल (Pharmaceuticals), कपड़ा उद्योग, उद्योग संबंधी पैकेजिंग(Packaging), परिवहन( transportation) आदि शामिल हैं। प्लास्टिक की अधिक मांग के कारण प्लास्टिक का उत्पादन बहुत अधिक मात्रा में हो रहा है। मगर अफ़सोस की बात यह है कि इनका प्रबंधन (waste management) कायदे से नहीं हो रहा है और यही वजह है कि वातावरण में प्लास्टिक के सूक्ष्मकणों की मात्रा बढ़ती जा रही है।
प्लास्टिक में पॉलीएथिलीन(Polyethylene), पोलीप्रोपलीन(polypropylene), पॉलीस्टीरीन (polystyrene), पॉलीएथिलीनटेरिफ्थेलैट (Polyethylene-terephthalate), पॉलीविनयलक्लोराइड(Polyvinylchloride ‘pvc’) एवं पॉल्यूरेथॉन (polyurethane ‘Pu’) जैसे रसायन मौजूद होते हैं। सूरज से आने वाली पराबैंगनी किरणों (ultraviolet rays) एवं मिट्टी में मौजूद सूक्ष्मजीवों की गतिविधियों से यह बड़े प्लास्टिक सूक्ष्म (microplastic ) या अति सूक्ष्म प्लास्टिक कणों (nanoplastic) में विभाजित जाते हैं और उस क्षेत्र के पारितंत्र एवं जैव विविधता को प्रभावित करते हैं। इन कणों में भी इन रसायनों की मात्रा मौज़ूद होती है।
प्लास्टिक के सूक्ष्म कण पर्यावरण के लिए काफी घातक है क्योंकि यह बड़ी आसानी से मिट्टी में, पानी में मिल जाते हैं। अध्ययन बताते हैं की जलीय तंत्र जैसे समुद्र, नदियाँ, तटीय इलाकों में पाए जाने वाले पेड़ों जैसे मैन्ग्रोव, समुद्रीतलछट, कीचङ, इन्वेर्टिब्रेट्स (invertebrates बिना रीढ़ वाले जीव) एवं वर्टिब्रेट्स (vertebrates रीढ़ वाले जीव) आदि में इनकी बहुत अधिक मात्रा पायी गयी है। माइक्रोप्लास्टिक से जलीय तंत्र की पूरी जैव विविधता प्रभावित हो चुकी है।
वैज्ञानिकों के अनुसार स्थलीय क्षेत्र में प्लास्टिक के सूक्ष्म कणों की मात्रा का बढ़ना ज्यादा नुकसानदायक साबित हो सकता है क्योंकि इनकी मौजूदगी से कृषि पर बहुत बुरा असर पड़ सकता है। कृषि एवं जन जीवन एक दूसरे पर निर्भर है। मिट्टी में उपस्थित सूक्ष्मप्लास्टिक कण पौधों के भीतर पानी व पौष्टिक तत्वों के माध्यम से पहुंच सकते हैं। प्लास्टिक कणों के मिट्टी में घुलने से मिट्टी में उपस्थित कार्बन, मिट्टी के पीएच (p-H), थोक घनत्व (bulk density) मिट्टी की सरंध्रता (porosity), मिट्टी के एकत्रीकरण (soil aggregation ) को भी नुकसान पहुंच सकता है। धरती में पानी को रोकने की क्षमता, शुष्कता (aridity), जैविक एवं रासायनिक कार्य प्रणाली पर भी बुरा असर पड़ सकता है। सूक्ष्मप्लास्टिक कण (Microplastic) बहुत लंबे समय तक मिट्टी में बने रहते है और यह पेड़ पौधों में जल के माध्यम से स्थानांतरित (transfer) हो जाते हैं। इस प्रकार से यह सूक्ष्म कण पेड़-पौधों की कार्य प्रणाली को बाधित करते हैं। पेड़ों की अलग-अलग प्रजातियों और उन की संवेदनशीलता पर निर्भर करता है कि माइक्रोप्लास्टिक उनके लिए किस हद तक घातक हो सकतेहैं। इसके अलावा प्लास्टिक तत्व की गुणवत्ता एवं उसकी किस्म पर भी यह बात निर्भर करती है। मृदा की संरचना एवं उसकी जैवविविधता पर पौधों का विकास निर्भर करता है। मृदा में मौजूद सूक्ष्मजीव-जंतुओं में जरा सी भी फेरबदल से पेड़ों के विकास, उनकी उत्पादिकता और विविधता पर असर पड़ता है।
अध्ययन में एक और बात भी सामने आयी है कि सूक्ष्मप्लास्टिक कण पेड़-पौधों में पहुंचने के स्थान पर पेड़ों की जड़ों की कोशिकाओं में मौजूद छोटे-छोटे छिद्रों (pores ) को बंद कर देते हैं इससे पेड़ों में पानी एवं पौष्टिक तत्वों के पहुंचने में भी दिक्कत आती है। माइक्रोप्लास्टिक मिटटी में मौजूद सूक्ष्मजीवों के समुदाय को प्रभावित करते है, यह वोह जीव हैं जो बड़े तत्वों और पदार्थो को तोड़ने का काम करते हैं और मिट्टी को उपजाऊ और मुलायम रखते हैं। शोध से पता चलता है कि माइक्रोप्लास्टिक में कॉपर(copper), क्रोमियम(chromium), ब्रोमीन(bromine), पारा (mercury), कोबाल्ट (cobalt ) एवं कीटनाशक जैसे तत्व भी घुले होते हैं।
वैज्ञानिकों के अनुसार माइक्रोप्लास्टिक (microplastic or nanoplastic ) या नैनो प्लास्टिक को दो भागों में बांटा गया है। प्राथमिक (primary) माइक्रोप्लास्टिक एवं माध्यमिक (secondary) माइक्रोप्लास्टिक। प्राथमिक माइक्रोप्लास्टिक वो होते हैं जिन्हें छोटे आकार 5 mm में ही निर्मित किया जाता है। इनका इस्तेमाल बड़ी प्लास्टिक वस्तुओं के निर्माण में प्रयोग किये जाने वाली छोटी वस्तुओं को बनाने के लिए किया जाता है। इसके साथ ही प्रसाधन से संबंधित वस्तुओं एवं अन्य व्यक्तिगत केयर उत्पादों में किया जाता है। प्राथमिक माइक्रोप्लास्टिक (plastic) अगर पर्यावरण में घुल जाए तो उसे हटाना मुश्किल हो जाता है। पर्यावरण में माध्यमिक(secondary) माइक्रोप्लास्टिक बड़े प्लास्टिक के टूटने से घुलती है। माध्यमिक माइक्रोप्लास्टिक बहुत आसानी से पानी में घुलकर सीवेज और सतह के पानी में मिल जाता है। इसके अलावा जिन स्थानों मैं कूड़ा एकत्र किया जाता है वहां की भीतरी ज़मीन में भी यह प्रचुर मात्रा मैं पहुंच सकता है। माइक्रोप्लास्टिक विभिन्न आकार के हो सकते हैं जैसे फाइबर, पेलेट, ग्रेन्यूल्स, फोम, माइक्रोफाइब्रिल्स आदि। कृषि के अलावा वन जीवन भी इस से प्रदूषित होने से बच नहीं पा रहा है मगर अभी यहां परमाइक्रोप्लास्टिक किस हद तक पहुंच चुका है इस के बारे में अभी थोड़ी ही जानकारी है।
united nations environmental program (UNEP) ने प्लास्टिक से उत्पन्न होने वाली समस्या को पूरे विश्व के लिए खतरा मानते हुए इसे अपनी श्रेणी में शुरू के दस स्थानों में जगह दी है। इस प्रदूषण से बचाव के लिए भी कई तरह के अध्ययन चल रहे हैं की किस प्रकार माइक्रोप्लास्टिक से होने वाले प्रदूषण को रोका जाये क्योंकि यह प्रदूषण जल , वायु और धरती तीनों को ही नुकसान पहुंचा सकता है। कृषि सम्बन्धी पारितंत्र तो माइक्रोप्लास्टिक के लिए एक तरह से गोदाम का काम कर रहा है।
by,
p.d.saxena
credit…
Rev Environ Sci Biotechnol https://doi.org/10.1007/s11157-022-09621-4
REVIEW PAPER
Unravelling the emerging threats of microplastics to agroecosystems
Shweta Yadav Ekta Gupta Anju Patel Suchi Srivastava. Virendra Kumar Mishra · Poonam C. Singh Pankaj Kumar Srivastava. Saroj Kanta Barik
Shweta Yadav and Ekta Gupta authors contributed equally.
S. Yadav P. C. Singh () Microbial Technology Division, CSIR-National Botanical Research Institute, Lucknow, India e-mail: poonamnbri@gmail.com
S. Yadav S. Srivastava P. C. Singh ACSIR, CSIR-National Botanical Research Institute, Lucknow, India
E. Gupta A. Patel - P. K. Srivastava () S. K. Barik Environmental Technology Division, CSIR-National Botanical Research Institute, Lucknow, India e-mail: drpankajk@gmail.com
V. K. Mishra
Institute of Environment and Sustainable Development, Banaras Hindu University, Varanasi, India
P. C. Singh P. K. Srivastava
Division of Plant Ecology and Environmental Technologies, CSIR-National Botanical Research Institute, Rana Pratap Marg, Lucknow 226001, India
Published online: 26 May 2022