प्रकृति की सुपर हीरो रॉक वार्निश... क्या रॉक वार्निश में छुपे हैं मंगल ग्रह के अनसुलझे सवालों के उत्तर ?
लद्दाख के सुंदर और अनोखे परिदृश्यों ने दशकों से पर्यटकों तथा वैज्ञानिकों का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित किया है। यहाँ की खूबसूरती कुछ अलग ही छटा बिखेरती है। यह क्षेत्र एक उच्च अक्षांसीय मरुस्थल है क्योंकि हिमालय मानसून को रोक देता है। शुष्क एवं चरम जलवायु (जीवन के संदर्भ में अति उच्च या निम्न तापमान), विषम परिस्थितियों के मध्य जन-जीवन, वनस्पतियों और जीव जंतुओं का अस्तित्व, इस स्थान को खास बनाता है। शुष्कता तथा ठंडक के साथ-साथ ऊंचाई पर स्थित होने की वजह से यहाँ पैराबैंगनी किरणों से भी सुरक्षा जरूरी है। अगर वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो भारत की यह खूबसूरत धरती अपने भीतर बहुत से राज़ समेटे हुए है। इसलिए यह स्थान अध्ययन हेतु वैज्ञानिक समुदाय को हमेशा से आकर्षित करता रहा है। इस भूमि की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यहाँ के भूदृश्य कि तुलना मंगल ग्रह से कि जा सकती है। आज हम जिस अध्ययन की चर्चा करने जा रहे है वह न सिर्फ मंगल ग्रह के कुछ अनसुलझे सवालों के उत्तर तलाशने में मददगार साबित हो सकता है, साथ ही कुछ ऐसे तथ्य भी प्रदान करता है जो जन-जीवन हेतु भविष्य में लाभकारी साबित हो सकते हैं।
बीरबल साहनी पुराविज्ञान संस्थान, लखनऊ (Birbal Sahni Institute of Palaeosciences ‘BSIP’ Lucknow) के वरिष्ट वैज्ञानिक डॉक्टर अनुपम शर्मा (Dr Anupam Sharma) तथा डॉक्टर अमृतपाल सिंह चड्डा (Dr Amritpaal Singh Chaddha) ने अपने इस अध्ययन में बहुत से उत्तर तलाशने में सफलता प्राप्त करी है जो अभी सवाल ही बने हुए थे। डॉ चड्डा ने बताया कि विश्वभर में शुष्क तथा अर्ध शुष्क स्थानों पर मिलने वाली चट्टानों या शैल समूह पर भूरी, नारंगी-पीली या काले रंग की चमकती हुई एक परत/कोटिंग देखने को मिलती है, इस परत को रॉक वार्निश का नाम दिया गया हैं, उनका अध्ययन इसी पर आधारित है । रॉक वार्निश से संबन्धित अपने अध्ययन हेतु डॉ शर्मा तथा डॉ चड्डा ने लद्दाख का चयन किया क्यूंकी यह क्षेत्र अपनी विषम जलवायु परिस्थितियों तथा भूदृश्य की वजह से एक उपयुक्त स्थान है।
डॉ चड्डा ने बताया यह वार्निश प्रकृतिक तौर पर निर्मित एक सतह होती है जो मैगनीज (एमएन), आइरन (Fe) और क्ले खनिजो से समृद्ध होती है। रॉक वार्निश तथा अंतर्निहित चट्टानों के मध्य विविध प्रकार के सूक्ष्मजीवों कि उपस्थिति भी देखने को मिलती है। प्रश्न यह उठता है की रॉक वार्निश, सूक्ष्मजीवों तथा मूल चट्टानों के बीच क्या संबंध है? वार्निश का विकास कैसे होता है? सूक्ष्मजीव विषम परिस्थितियों में संरक्षित कैसे रहते हैं? अध्ययन से यह बात भी सामने आयी है की यह सूक्ष्मजीव दीर्घावधि तक संरक्षित रहते हैं, इसके पीछे कौन से कारण उत्तरदायी हैं ? डॉ शर्मा और डॉ चड्डा ने अपने अध्ययन के माध्यम से इन सभी प्रश्नों के उत्तर तलाशे हैं।
उन्होने बताया की परत और अंतर्निहित चट्टानों के मध्य विविध प्रकार के सूक्ष्मजीव तथा फैटी एसिड, एमाईड, एलकाइल बेन्जीन जैसे मेटाबोलाइट उपस्थित होते हैं , इसके साथ ही सूक्ष्मजीवों की श्रृंखला में कवक (fungus) तथा सायनोबैकटीरियल कोशिकाओं की उपस्थिति भी देखने को मिली है। इन सबके बीच परस्पर क्रिया के परिणामस्वरूप पतली सतह का निर्माण होता है, जिसे रॉक वार्निश के नाम से जाना जाता है। इस बात पर लगातार अध्ययन चल रहा है की सूक्ष्मजीवीय प्रेरित जैविक सतह के विकास में किस प्रकार की अंतक्रियाएँ या कारक जिम्मेदार हैं। रॉक वार्निश मूल-चट्टानों/मूल-शैल परसूक्ष्म जीवों के विकास हेतु आदर्श वातावरण प्रस्तुत करती है तथा उन्हें पोषण प्रदान करती है। यही परत शुष्क तथा ठंडी जलवायु में चट्टानों का आवरण बन उन्हें इन विषम परिस्थितियों से तो बचाती हैं इसके साथ ही पराबैंगनी किरणों से भी रक्षा करती है। यह भी अनुमान लगाया गया है की पर्त के भीतर मिलने वाले कार्बनिक तत्त्व और स्थानीय पर्यावरण के साथ उनका सहसंबंध प्राचीन कार्बनिक तत्वों के संरक्षण की संभावना व्यक्त करता है। अध्ययन के दौरान सूक्ष्म जीवों की छाप या उपस्थिति को जानने हेतु कार्बनिक जैव चिन्हक/बायोमार्कर तथा समस्थानिक विश्लेषण का इस्तेमाल किया गया है। शोध में यह बात भी सामने आई है की वार्निश में Mn (मैंगनीज़) तथा Iron (आइरन) की उपस्थिती चरम जलवायु (जीवन के संदर्भ में अति उच्च या निम्न तापमान) से बचाव के साथ ही पराबैंगनी किरणों से भी रक्षा करता है।
Field photographs of different sample locations (RV-1 to RV-4) with field coordinates and elevation of varnish coated rocks utilized in the current investigation. / अध्ययन क्षेत्र
डॉ चड्डा ने बताया इस अध्ययन के तीन प्रमुख पहलू है, पहला एस्ट्रोबायोलोजिकल (इसके अंतर्गत पृथ्वी से हटकर ब्रह्मांड में जीवन की खोज से संबन्धित अध्ययन किया जाता हैं)-आजकल मंगल ग्रह की परिस्थितियों को समझने के लिए लद्दाख को एक आदर्श पृष्ठभूमि के तौर पर देखा जा रहा है। इस शोध के लिए कुछ प्रेरणा इस संभावना से भी मिलती है कि मंगल ग्रह में मिलने वाली Mn (मैंगनीज़) समृद्ध कोटिंग हेतु स्थलीय रॉक वार्निश को एक एनालॉग (मिलते जुलते आंकड़ो का संग्रह) के तौर पर देखा जा सकता है तथा मंगल पर वार्निश की मौजूदगी वहाँ पर जीवन की उपस्थिती का अनुमान लगाने में सहायक हो सकती है क्यूंकी जिस प्रकार वार्निश सूक्ष्मजीवों को सुरक्षा प्रदान करती हैं, माइक्रोबियल प्रक्रियाएँ भी वार्निश उत्पत्ति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।
अध्ययन के दूसरे पहलू के संबंध में डॉ चड्डा ने बताया की इसके परिणाम चौकने वाले थे क्यूंकी वार्निश की सतह तथा अंतर्निहित शैलसमूह कि सतह (surface wettability) के स्वभाव में अंतर देखने को मिला । मूल-चट्टान का स्वभाव हाइड्रोफिललिक 'जलरागी' (hydrophillic) देखा गया यानि इसपर पानी ठहर रहा था जबकि वार्निश का स्वभाव हाइड्रोफोबिक 'जलरोधी' (hydrophobic) था यानि उसपर पानी का ठहराव नहीं देखा गया। शोध से यह अनुमान लगाया गया है कि सूक्ष्मजीवीय समूह में मौज़ूद कवक (fungi) हाईड्रोफोबीन्स का निर्माण करते हैं। शायद हाईड्रोफोबीन्स ही वार्निश के इस स्वभाव का कारक है। यह कथन गलत नहीं होगा कि वार्निश का व्यवहार एक रेन कोट के समान देखने को मिला ।
इस अध्ययन का तीसरा पहलू - (hydrogen energy) के उत्पादन से संबन्धित है । हाइड्रोजन ऊर्जा उत्पादन हेतु विधयुत रासायनिक प्रक्रिया (electrochemically) का इस्तेमाल किया जाता है। इसके तहत इलेक्ट्रोकैटेलिस्ट (electrocatalyst) का प्रयोग कर हाईड्रोजन तथा पानी के अणुओं को विभाजित करके पृथक किया जाता है। इस प्रक्रिया हेतु बेहतर इलेक्ट्रोकैटेलिस्ट कि आवश्यकता होती है। पिछले कई वर्षों से उच्च गुणवत्ता वाले इलेक्ट्रोकैटेलिस्ट बनाने के लिए काफी प्रयास चल रहे हैं मगर अभी तक सफलता नहीं मिल पायी है। अध्ययन से पता चलता है कि प्राकृतिक तौर पर निर्मित मैंगनीज़ (manganese) व आयरन (iron) युक्त वार्निश बेहतर इलेक्ट्रोकैटेलिस्ट कि भूमिका निभा सकती है।
डॉ चड्डा ने बताया की वार्निश का स्वभाव, जिसमे सबसे महत्वपूर्ण इसका हायड्रोफोबिक गुण है, भविष्य में पेंट उधोग में बड़ी क्रांति ला सकता है, क्यूंकी जब वार्निश और माइक्रोबियल समुदाय का सहसंबंध चट्टानों कि सदियों से विपरीत परिस्थितियों जैसे सर्दी, धूप, बारिश, आँधी, तूफान तथा परबैगनी किरणों से रक्षा कर रहा है तो अगर इस तकनीक का उपयोग पेंट के निर्माण में किया जाए तो यह बरसों तक भवनो, इमारतों की रक्षा कर सकेंगे ।प्रकृति में मौज़ूद रॉक वार्निश को डॉ चड्डा की नज़रों से देखे तो सही मायनों में एक सुपर हीरो है। जो हमे मंगल ग्रह से तो जोड़ता ही है, विषम परिस्थितियों में चट्टानों तथा उसपर मौज़ूद सूक्ष्मजीवों की रक्षा करता है। भविष्य में इनके इन्हीं गुणों का प्रयोग कर पेंट एवं रंगद्रव्य उद्योगों के लिए जैव-प्रेरित उत्पादों, जल प्रतिरोधी सामग्री के निर्माण के साथ-साथ प्राकृतिक पराबैंगनी रक्षक का निर्माण संभव है। सबसे अहम बात तो यह है कि हाइड्रोजन ऊर्जा उत्पादन हेतु यह एक बेहतर इलेक्ट्रोकैटेलिस्ट भी हैं ।
By
Parul Datt Saxena
Credit:
Rock Varnish: Nature’s Shield
Amritpal Singh Chaddha,* Anupam Sharma,* Narendra Kumar Singh, Devendra Kumar Patel and G. N. V. Satyanarayana
Cite This: https://doi.org/10.1021/acsearthspacechem.3c00071
http://pubs.acs.org/journal/aesccq