लंदन के नैचुरल म्यूज़ियम कि तर्ज़ पर भारत में पहली बार 'द इंडियन म्यूजियम ऑफ़ अर्थ' की वधारणा..भूधरोहर के संरक्षण हेतु महत्वपूर्ण कदम...
Concept of The Indian Museum of Earth 'TIME'
भारत के पास एक समृद्ध भूवैज्ञानिक विरासत (Geoheritage) है जो इसे अद्वितीय देश की श्रेणी में शामिल करती है। जहां एक दिशा में जीवाश्म स्थल हैं तो दूसरी तरफ भूवैज्ञानिक विशेषताओं वाले क्षेत्र हैं, जो हमे करोड़ो वर्ष पहले के दर्शन कराते हैं और विविध प्रकार के जीव समूह (biota) की उत्त्पत्ति तथा विकास के साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं। प्रागैतिहासिक जलवायु तथा जीवन को वर्तमान से जोड़ते हैं और आज के परिदृश्य में जलवायु परिवर्तन को समझने हेतु एक कड़ी की भांति कार्य करते हैं। जिन्हें भावी पीढ़ी के साथ-साथ सार्वजनिक प्रदर्शन हेतु संरक्षण की जरूरत है।
उपर्युक्त अध्ययनों को एक कड़ी में पिरोने का काम 'पुराजीवाश्मविज्ञान' करता है, वैज्ञानिकों की माने तो अन्य वैज्ञानिक क्षेत्रों की तुलना में पुराजीवाश्मविज्ञान (palaeontology) जैवविविधता तथा विलुप्त होती प्रजातियों से संबंधित सिद्धांत को समझने का सबसे अधिक अवसर प्रदान करता है। पृथ्वी के लगभग 3.6 अरब पूर्व के इतिहास को समझते हुए भविष्य में जलवायु परिवर्तन से होने वाले जैवविविधता शरण, विलुप्त होती प्रजातियों, जीव जंतुओं को विनाश से बचाने हेतु रास्ते सजग करता है। यह बात तो स्पष्ट है कि प्राकृतिक वास के नुकसान तथा जलवायु परिवर्तन के कारण पृथ्वी की जैव विविधता खतरनाक दर से घट रही है। इसलिए अपनी भूधरोहर के संरक्षण हेतु सही नीतियों, उपायों तथा जनसम्पर्क के जरिए जन-जन में जागरूकता की आवश्यकता है। यही वजह है की शिक्षा एवं अनुसंधान की ओर जनता का ध्यान आकर्षित करने हेतु भारत में एक अत्याधुनिक अनुसंधान-उन्मुख संग्रहालय जैसे पुराजीवाश्मकीय संग्रहालयों (Palaeontological Museum) की अवधारणा विकसित हुई है।
[द इंडियन म्यूजियम ऑफ़ अर्थ (‘टाइम’) The Indian Museum of Earth ‘TIME’] का विचार इस तथ्य पर आधारित है कि संग्रहालय समाज का दर्पण होते हैं यानी यह किसी भी समाज में (विभिन्न चरणों में) विकास को दर्शाते हैं, समाज में बेहतर समझ विकसित करने, युवा पीढ़ी में जीवाश्म विज्ञान के विषय में रुचि पैदा करने में मदद कर सकते हैं। 'टाइम' संग्रहालय का लक्ष्य कई विषयों को एकीकृत करना तथा जनता को लगातार संलग्न रखना है। इसके साथ ही यह जन-मानस में वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने और निकट भविष्य में वैज्ञानिक प्रयासों के लिए समझ में सुधार करने में मदद कर सकता है।
वर्तमान में भारत में अनुसंधान एवं शैक्षणिक संस्थानों के संग्रहालयों के अलावा कई संग्रहालय है जहां भूवैज्ञानिक/पुरातात्विक/पुरातात्विक संग्रहों का संग्रह हैं जैसे, नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय (The National Museum of Natural History, New Delhi) और भारतीय संग्रहालय, कोलकाता (Indian Museum, Kolkata)। हालाँकि, इनमें से कई संग्रहालयों में बेहतर तकनीक का अभाव है, प्रशिक्षित कार्यक्षमता की कमी है। इस वजह से इन संग्रहालयों में आम जनता की पहुँच तथा आगंतुकों की संख्या को बढ़ाने के लिए सुधार की
आवश्यकता है, इसी बात को ध्यान में रखते हुए दुनिया के प्रसिद्ध पुरा जीवाश्मकीय संग्रहालयों जैसे कि अमेरिका के वाशिंगटन डीसी में स्थित स्मिथसोनियन नेशनल म्यूजियम ऑफ नेचुरल हिस्ट्री [Smithsonian National Museum of Natural History (Washington DC, USA)] तथा प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय,लंदन, यूके [Natural History Museum, London, UK] के अनुरूप ‘टाइम’ की परिकल्पना की गयी है।
हिस्टोग्राम में पिछले 5 वर्ष (2018-2022) के दौरान स्मिथसोनियन नेशनल म्यूजियम ऑफ नेचुरल हिस्ट्री (वाशिंगटन डीसी, यूएसए), नेचुरल हिस्ट्री म्यूजियम (लंदन, यूके) तथा भारत के इंडियन म्यूजियम (कोलकाता) संग्रहालयों में आगंतुकों की संख्या (लाखों में)।
लखनऊ स्थित बीरबल साहनी पुराविज्ञान संस्थान (Birbal Sahni Institute of Palaeosciences, Lucknow 'BSIP') ने देश की भू-धरोहर के संरक्षण हेतु ‘टाइम’ म्यूज़ियम की अवधारणा को रूप देने की दिशा में देश के विभिन्न संस्थानों और संगठनों के सहयोग से एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है, जिससे जनता का ध्यान देश की भू-विरासत तथा उससे संबन्धित भूवैज्ञानिक शिक्षा के महत्व तथा शोध कि तरफ आकर्षित किया जाए। इस उदेश्य से जुड़े संस्थान के वैज्ञानिक डॉ विवेश वी कपूर ने बताया कि इस दिशा में जनता के बीच जागरूकता की कमी, नीतियों का ठीक से अमल न होना, पर्याप्त कानून कि कमी के कारण कितने ही असाधारण जीवाश्म स्थल तथा अमूल्य खोज (निजी संग्रह सहित) कि देख भाल नहीं हो रही है। इसके साथ ही स्थानीय लोगों द्वारा इन स्थानों का दोहन हो रहा है तथा अधिकारियों द्वारा इनकी उपेक्षा की जा रही है। इसलिए भारत में द इंडियन म्यूजियम ऑफ़ अर्थ (‘टाइम’) जैसे अनुसंधान उन्मुख संग्रहालय कि आवश्यकता है।
संस्थान के वैज्ञानिकों ने लंदन स्थित नैचुरल म्यूज़ियम तथा कोलकाता स्थित भारतीय संग्रहालय कि तर्ज़ पर टाइम म्यूज़ियम कि अवधारणा पर मोहर लगाने हेतु जनता की राय जाननी चाही, इसके लिए एक छोटा सा सर्वे किया गया। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह मात्र सर्वे नहीं है यह भारत की भू-विरासत को बचाने के लिए एक पहल है। संस्थान के वैज्ञानिक डॉक्टर विवेश वी कपूर और उनकी टीम के नेत्रत्व में किए गए इस सर्वेक्षण का आधार कुछ इस प्रकार था - जीवाश्म संरक्षण और जलवायु परिवर्तन से जुड़े अनुसंधान में जीवाश्मों के महत्व के संदर्भ में 'पुराजीवाश्म विज्ञान' विषय पर सार्वजनिक जागरूकता प्राप्त करने का प्रयास तथा 'टाइम' जैसे अत्याधुनिक संग्रहालय की स्थापना के लाभों के संदर्भ में सार्वजनिक रुचि तथा जागरूकता पैदा करना।
डॉक्टर कपूर ने जानकारी दी कि वर्तमान सर्वेक्षण बीरबल साहनी पुराविज्ञान संस्थान (बीएसआईपी) तथा एकेडमी ऑफ साइंटिफिक एंड इनोवेटिव रिसर्च (एसीएसआईआर) के तत्वावधान में शुरू किया गया। इसके लिए जीवाश्मों के प्रति सार्वजनिक समझ, उनके संरक्षण एवं मूल्य, जलवायु परिवर्तन के मुद्दे ‘टाइम’(TIME) की स्थापना के लिए सार्वजनिक प्राथमिकताओं के बारे में जानकारी प्राप्त करने हेतु 'प्रश्नावली' तैयार की गई। सर्वेक्षण के दौरान, उत्तर प्रदेश राज्य की राजधानी लखनऊ में कुल 150 व्यक्तियों (63 महिलाएं और 87 पुरुष) का साक्षात्कार लिया गया। सर्वेक्षण को कई वर्गों में विभाजित किया गया जिसमे महिला और पुरुष के अलावा उम्र, व्यवसाय आदि शामिल था। प्रतिभागियों की सुविधा के लिए अधिक प्रश्न नहीं रखे गए (16 प्रश्न)। प्रश्नावली के अंतर्गत 8 प्रश्न ‘हाँ या नहीं में’ जवाब देने वाले थे, 6 प्रश्न ‘बहुविकल्पीय’ थे, तथा 2 प्रश्न ‘वर्णनात्मक’ (descriptive) थे। गुणात्मक (qualitative) और मात्रात्मक(quantitative) आंकड़े एकत्र करने के लिए ओपन एंडेड और क्लोज एंडेड दोनों प्रश्नों का उपयोग किया गया। दो वर्णनात्मक प्रकार के प्रश्नों में से एक संग्रहालय के निर्माण से होने वाली असुविधाओं (disadvantages) पर केंद्रित था, जबकि दूसरा प्रश्न विषय-वस्तु पर प्रतिभागियों के सुझाव प्राप्त करना था। व्यक्तिगत प्रतिक्रियाएं जानने के लिए आमने-सामने साक्षात्कार लिया गया इसमें 92 प्रतिभागी शामिल थे तथा ऑनलाइन सर्वेक्षण (Google फॉर्म के माध्यम से) इसमें 58 प्रतिभागी शामिल हुए। साक्षात्कार से पहले, प्रतिभागियों को सर्वेक्षण में शामिल संगठनों तथा सर्वेक्षण के उद्देश्य और लाभ की पृष्ठभूमि प्रदान की गई थी।
सर्वेक्षण में देखा गया की लगभग सभी प्रतिभागी जीवाश्म ईंधन, कोयला, तेल तथा गैर नवीकरणीय ऊर्जा से अवगत थे परन्तु पुराजीवाश्म विज्ञान के प्रति उनकी जानकारी न के बराबर थी। सर्वेक्षण के अनुसार, अधिकांश लोग (61%) इस बात से सहमत दिखे कि 'टाइम' जैसा संग्रहालय सार्वजनिक ज्ञान को बेहतर बनाने और भारत की भू-विरासत को संरक्षित करने के साथ-साथ स्थानीय अर्थव्यवस्था को लाभ पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। इसके अतिरिक्त, (65%) उत्तरदाताओं ने कहा कि वे परिकल्पित संग्रहालय में कई प्रकार की गतिविधियों का अनुभव करना चाहेंगे, जिनमें विज्ञान वृत्तचित्र देखना, व्याख्यान में भाग लेना, जीवाश्म प्रदर्शनियों को देखना और स्मारिका खरीदारी शामिल है। इसके अलावा, ~37% प्रतिभागियों ने भूवैज्ञानिक सिद्धांतों तथा जीवाश्मों से जुड़े अतिरिक्त पहलुओं को सीखने की इच्छा व्यक्त की। सभी ने इस प्रयास को उत्साहपूर्वक स्वीकार किया, और वे ऐसे संग्रहालयों की स्थापना को अपनाने और इसमें भाग लेने के लिए उत्सुक दिखे।
लोगों ने 'TIME' के संबंध में सुझाव भी दिए, जिनमें से जागरूकता और सलाह हेतु सर्वेक्षणों की आवृत्ति बढ़ाना, हिंदी या अध्ययन क्षेत्र में रहने वाले लोगों की मूल भाषा में सर्वेक्षण करना, राजस्व उत्पन्न करने के लिए मामूली प्रवेश शुल्क लेना आदि शामिल है। इस सर्वे से जुड़े डॉ कपूर का मानना है कि सरकारी और गैर-सरकारी संगठन, शैक्षणिक और अनुसंधान संस्थान और भूविज्ञान समुदाय मिलकर सेमिनारों, कार्यशालाओं और अन्य संबंधित गतिविधियों के रूप में नियमित रूप से सार्वजनिक कार्यक्रम आयोजित करके जागरूकता हेतु महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। इसके साथ ही भविष्य में सर्वेक्षण अनुसंधान का विस्तार भी किया जा सकता है जो फिलहाल सिर्फ 150 प्रतिभागियों के बीच किया गया। बहरहाल, सर्वेक्षण से प्राप्त जानकारी वैज्ञानिक समुदाय और/या नीति निर्माताओं को निर्णय लेने में सहायता कर सकती है क्योंकि वे सक्रिय रूप से भारत की भू-विरासत के संरक्षण हेतु ‘द इंडियन म्यूजियम ऑफ़ अर्थ’ (टाइम) जैसे अत्याधुनिक संग्रहालयों के विकास को सक्रिय रूप से बढ़ावा दे रहे हैं।
By Parul Datt Saxena
Credit:
A Survey of the Anticipated Role of the Indian Museum of Earth (TIME) to Foster Public Awareness towards the Preservation of Palaeontological Relics
Geoheritage (2023) 15:109 https://doi.org/10.1007/s12371-023-00877-y
PrachitaArora, PrashantMohanTrivedi, HarshitaBhatia, PriyaAgnihotri, ViveshV.Kapur,
Received: 19 June 2023/Accepted: 7 September 2023 © The Author(s), under exclusive licence to International Association for the Conservation of Geological Heritage 2023
Birbal Sahni Institute of Palaeosciences, 53-University Road, Lucknow 226007,
India Academy of Scientific & Innovative Research (AcSIR), Ghaziabad, Uttar Pradesh 201002, India