क्या फसलें ‘जलवायु परिवर्तन’ के अनुसार अपने को ढाल सकती हैं ? climate change and its impact on wheat crop
इसके दीर्घकालिक परिणाम कैसे होंगे ?
पिछले कई दशकों से जलवायु परिवर्तन के कारण वातावरण में बहुत से बदलाव देखने को मिल रहे हैं। इसमें अधिकतर बदलाव पूरे संसार के लिए विनाशकारी ही साबित हो रहे हैं। मगर कहते हैं कभी-कभी इन स्थितियों में कही कुछ अच्छाई छिपी होती है। बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट ऑफ पेलीओ साइंसेज (Birbal Sahni Institute of Palaeosciences ‘BSIP’) के वैज्ञानिकों द्वारा किये गए अध्ययन में कुछ इसी प्रकार के नतीजे देखने को मिले हैं। इस अध्ययन में मयंक शेखर (Mayank Shekhar), मुस्कान सिंह (Muskan Singh), शक्तिमान सिंह (Shaktiman Singh), अंशुमान भारद्वाज (Anshuman Bhardwaj), रुपेश ध्यानी (Rupesh Dhyani ), परमिंदर. एस. रनहोत्रा (Parminder S Ranhotra ), लिडिआ सैम (Lydia Sam) एवं अमलवा भट्टाचार्य (Amalava Bhattacharyya ) मुख्य रूप से जुड़े हुए हैं।
डॉक्टर मयंक शेखर बताते हैं कि जलवायु परिवर्तन की वज़ह से शीत ऋतु में पहले की तुलना में तापमान में बढ़ोत्तरी देखी जा रही है। तापमान का बढ़ना फसलों पर क्या प्रभाव डाल रहा है ? तापमान में होने वाली वृद्धि के परिणाम नकारात्मक (negative) हैं या सकारात्मक (positive) ? इन्हीं प्रश्नों का उत्तर जानने के लिए वैज्ञानिकों ने गेहूं की फसल पर अध्ययन किया। अध्ययन से पता चला की जाड़ों में तापमान के बढ़ने से गेहूं की उपज पर लघु अवधि के लिए भारी प्रभाव पड़ रहा है।
डॉक्टर शेखर के अनुसार भारतवर्ष में गेहूं गंगा क्षेत्र (gangetic plain ) की मुख्य फसल है। गंगा के मैदान एवं मध्य भारत पूरे एशिया में भारत के प्रमुख गेहूं उत्पादक क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं। अगर दृष्टि डालें तो चीन, यूरोपियन यूनियन और भारत पूरे विश्व में प्रमुख उत्पादक देशों में शामिल है। इस बात से सभी अवगत हैं कि जलवायु परिवर्तन पूरे पर्यावरण, जैवविविधता और पारितंत्र को प्रभावित कर रहा है। अध्ययन बताते हैं कि जलवायु परिवर्तन की वजह से सर्दियों (winters) में पहले की तुलना में कम ठंडक पड़ती है। मगर इस बढ़ते तापमान का गेहूं के उत्पादन पर असर देखने को मिला है। वैसे तो गेहूं की उत्पादकता पर मुख्यतः मिट्टी की गुणवत्ता, क्षेत्रीय जैव विविधता, वर्षा, सूर्य प्रकाश, नमी का भी भारी प्रभाव होता है। इन सबके बावजूद तापमान का बढ़ना गेहूं की उपज में बढ़ोतरी का एक अहम कारण बन रहा है।
आंकड़े बताते हैं की 2000 का दशक, 1990 के दशक से अधिक गर्म देखने को मिला और 1990 का दशक 1980 के मुकाबले अधिक गर्म पाया गया। इसलिए अध्ययन के दौरान 1971-2011 के बीच गेहूं की फसलों के विकास और तापमान में हो रहे बदलाव का क्या असर पड़ रहा है, इसपर खासतौर से नज़र रखी गयी। मज़े की बात यह है नतीजे सकारात्मक देखने को मिले हैं। गेहूं के उत्पादन में वृद्धि हुई है । ऐसा नहीं है की बेहतर उपज के पीछे और कारण नहीं हैं लेकिन बढ़ते तापमान ने फसल के विकास में एक जरूरी भूमिका अदा की है। मध्य भारत और पूरा गंगा का मैदान (gangetic plain) गेहूं की खेती के लिए सबसे उपयुक्त क्षेत्र माना जाता है। देशभर का 90% गेहूं उत्तर प्रदेश (uttar pradesh), पंजाब (punjab), हरियाणा (Haryana), मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh), बिहार (Bihar) और राजस्थान (Rajasthan) में पैदा होता है। भारत में गेहूं के उत्पादन पर नज़र डालें तो सालाना -85.7 मेगाटन (megatonne) की उत्पादकता है जो खाद्यान्न का 36 % है । 2017-2018 के बीच यह उत्पादकता 99.70 मेगाटन (megatonne) तक देखने को मिली । सालाना आंकड़े देखे जाएँ तो उत्पादन के आकड़ों में धीरे-धीरे बढ़त हो रही है। 2012-13 से 2017-2018 तक के बीच गेहूं का उत्पादन 87.39 से 94.57 मेगाटन ( megatonne) तक बढ़ा है। अध्ययन बताते हैं की पूर्व में तापमान में होने वाली 1 डिग्री सेल्सियस की बढ़त से गेहूं की उत्पादकता में 4-5 मेगाटन गिरावट देखी गयी लेकिन पिछले दशक के आंकड़ों से पता चलता है कि इनकी उत्पादकता में वृद्धि हुई है। इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि फसलें अपने आप को जलवायु परिवर्तन के अनुसार ढाल रही हैं।
1980 से 2010 तक के आंकड़ों पर नज़र डालें तो गेहू का उत्पादन दोगुना हुआ है। वैसे तो उत्पादकता बढ़ने के और भी मुख्य कारण हैं जैसे कृषि के क्षेत्र में तकनीकी विकास, मिटटी में सुधार, बेहतर जुताई का तरीका अपनाना, खाद एवं कीटनाशक का प्रयोग, गेहूं की बेहतर किस्म या प्रजाति को खेती में शामिल करना आदि। इसके बावजूद भी तापमान के बढ़ने का इन फसलों पर प्रभाव पड़ा है। डॉक्टर मयंक शेखर बताते है कि गेहूं का बेहतर उत्पादन जब तापमान (20-25 डिग्री सेल्सियस) के बीच हो और नमी (50 - 60%) हो तब सबसे अधिक होता है। अध्ययन के दौरान जलवायु परिवर्तन का प्रभाव इन फसलों पर किस प्रकार पड़ता है उसे देखने के लिए सिम्युलेशन मॉडल (Simulation model किसी वास्तविक चीज, प्रक्रिया का किसी अन्य विधि के द्वारा अनुकरण {नकल} करना अनुकार या सिमुलेशन {simulation} कहलाता है) और कुछ अन्य तरीके अपनाए गए । अध्ययन के दौरान अधिक व कम तापमान में फसल का स्वभाव, जलवायु में होने वाले बदलाव और फसल पर इसका प्रभाव आदि को ध्यान में रखा गया है। अध्ययन के लिए उत्तर प्रदेश के पांच जिलों को चुना गया। इनमें कानपुर, बांदा, झांसी,फैज़ाबाद एवं लखनऊ मुख्य हैं। उत्तर प्रदेश के यह पांच जिले भारतवर्ष में गेहूं की खेती में सबसे ज्यादा योगदान देते हैं ।अध्ययन के लिए 1971 से 2011 तक के आंकड़े एकत्र किये गए हैं। आंकड़ों के अनुरूप इन क्षेत्रों को दो भागों में बांटा गया ‘Region A’ और ‘Region B’ । Region A में कानपुर ,लखनऊ ,फैज़ाबाद और बाँदा आते हैं। इन स्थानों में सालाना वर्षा पैटर्न या प्रेसिपीटशन (precipitation) ~1013 mm एवं तापमान 25.9 डिग्री सेल्सियस होता है। Region B में झांसी शामिल किया गया। यहां का प्रेसिपिटेशन ~978m एवं 25.6° तापमान रहता है। यहाँ की जलवायु आधी शुष्क (Semi arid) है। Region A में तापमान 7.9 डिग्री से लेकर 42.1 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचता है। जबकि Region B में तापमान 8.5 से 42.3 degree celsius तक पहुंचता है। सभी क्षेत्रों का अलग - अलग अध्ययन करना जरूरी था । अध्ययन से इन दोनों क्षेत्रों के बीच के आपसी संबंध को समझने से यह पता चला की गेहूं की उपज में क्या अंतर है। इन स्थानों में वर्षा का प्राथमिक स्रोत मानसून की बारिश होती है। यह दक्षिण-पश्चिम से उठने वाला मानसून होता है। शीत ऋतु में होने वाली बारिश पश्चिम में होने वाली उथल-पुथल एवं उत्तर-पूर्वी मानसून के कारण होती है।
गेहूं की बुआई और फसल काटने तक, तापमान में होने वाले बदलाव की अहम भूमिका होती है। गेहूं अधिकतर अक्टूबर और नवंबर के महीने में बोया जाता है। अप्रैल से मई के माह में इसकी कटाई होती है | इनके विकास में तापमान में होने वाले बदलाव की मुख्य भूमिका है। गेहूं के विकास के लिए सबसे सही तापमान जाड़ों में ~ 10-15°C और गर्मी में ~ 21-26 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए | 35 डिग्री सेल्सियस से अधिक का तापमान फसल को नुकसान पहुंचा सकता है। इन पांच क्षेत्रों के अध्ययन बताते हैं कि सर्दियों में कम तापमान से उपज में गिरावट देखने को मिली और अधिक तापमान से उपज में बढ़ोतरी देखी गयी। इस अध्ययन का मकसद ही यही है की गेहूं की फसल और शीतऋतु में बढ़ते तापमान के बीच क्या संबंध है यह जाना जा सके इसलिए 1971 -2011 के बीच गेहूं की फसलों के विकास और तापमान में बदलाव पर खास नज़र रखी गयी।
इसके अलावा, टेली कनेक्शन (teleconnection) के दृष्टिकोण को ऊंचाई और अक्षांश (latitude), पूर्वाग्रह तापमान डेटा( bias temperature data) और संबंधित चूक दर गणनाओं (lapse rate calculation) के सुधार से समझौता किया गया है। विश्लेषण भी दुनिया के कई हिस्सों में सकारात्मक सहसंबंधों के बावजूद, दुनिया भर में गेहूं के उत्पादन को संशोधित करने में एक प्रमुख कारक के रूप में सर्दियों के तापमान की पुष्टि नहीं करता है। इसके अलावा, सांख्यिकीय विश्लेषण (statistical analysis) अक्सर अस्पष्ट प्रबंधन जानकारी और फसल तनाव डेटा (पानी, पोषक तत्व, कीट, और रोग) के साथ विभिन्न प्रकार के वातावरण से रिकॉर्ड डेटा पर निर्भर करता है। इसके अलावा, कभी-कभी उपलब्ध डेटासेट में सीमाएं होती हैं और प्रक्रिया मॉड्यूल में अनिश्चितता होती है जो सांख्यिकीय परिणामों (statistical results) को प्रभावित कर सकती है। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि जलवायु परिवर्तन वास्तविक है और क्षेत्रीय फसल उत्पादन पर इसके सकारात्मक अल्पकालिक मौसमी प्रभावों के बावजूद, जैसा कि इस अध्ययन में पाया गया है। दीर्घकालिक प्रभाव काफी हानिकारक होने वाले हैं।
by,
P.d.Saxena
credit:
Theoretical and Applied Climatology http:doi.org/10.1007/s00704-022-04246-7
Rising winter temperatures might augment increasing wheat yield in Gangetic Plains
Mayank Shekhar'. Muskan Singh. Shaktiman Singh. Anshuman Bhardwaj. Rupesh Dhyani*. Parminder S. Ranhotra'- Lydia Sam³. Amalava Bhattacharyya¹
Received: 4 March 2022/Accepted: 11 October 2022 © The Author(s), under exclusive licence to Springer-Verlag GmbH Austria, part of Springer Nature 2022
Mayank Shekhar mayankshekhar01@gmail.com
Birbal Sahni Institute of Palaeosciences, Lucknow, India
Agromet Advisory Services Division, India Meteorological Department, New Delhi, India
School of Geosciences, University of Aberdeen, Aberdeen,
UK G. B. Pant, National Institute of Himalayan Environment &
Sustainable Development, Almora, India
Published online: 21 October 2022